रेत हो गए लोग ...

रेत हो गए लोग ...
रवि प्रकाश

Tuesday, December 28, 2010

इस सुबह को गौर से देखो

देखो,
इस सुबह को गौर से देखो !
सूरज उंघते हुए
निकल रहा है कैसे
धरती की कोंख से ,
और रेंग रहा है पहाड़ों पर
आकाश की तरफ !
गौरैया कैसे हसरत भरी नज़रों से
देख रही है आकाश को,
बंद कलियों को गौर से देखो
जो बस अभी मुस्कुराने को है,
आकाश की ओर चलने को आतुर
दूबों की गोंद में खेलती
ओस की बूंदों को देखो !

उठो ,
तुम भी उसी तरह उठो
उठो कि
तुम भी उसी राह के मुसाफिर हो
तुम्हारे तकिये और गाल के बीच में
अभी भी थोड़ी सुबह बाकी है
उठो,उसी तरह उठो

मेरे प्रेम करने से पहले.....

मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
नदियाँ अनवरत हो जाएँ
और पत्थरों से टकराने का सिलसिला थम जाये !
डूब जाने का डर,
नदियाँ अपने साथ बहा ले जाएँ
और उनकी प्रवाह में डूबा हुआ मेरा पांव
ये महसूस करे,
कि नदियाँ किसी देवता के सर से नहीं
वरन पृथ्वी कि कोंख से निकली हैं !

मैं चाहूँगा नदी के किनारे पर बैठी औरत,
जब सुनाये कहानियां नदियों की
तो त्याग दे देवताओं की महिमा !
वो बताये अपने पुरखों के बारे में
और बताये, कि सबसे पहले हम आकर, यहीं बसे
नदी हमारा पहला प्रेम थी !

मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
पेड़ पतझड़ के बाद
बसंत की आवग का,दर्शक ना रह जाये
हरेपन के लिए मौसम के खिलाफ
नदी और सूर्य को एक कर दे,
वो महसूस कर ले
घोसलों और झोपड़ियों के पति अपने दायित्व को !

मैं चाहूँगा,
गौरैया और पेड़, जब आपस में बातें करें
तो कहें,वो आँगन जहाँ तुम्हें दाने मिलते हैं
सृष्टी की आदि में मेरी इन्ही भुजाओं पर बसे थे
आज पृथ्वी से इस पर इर्ष्या है मेरी !


मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
पत्थर ह्रदय की तरह धड़कने लगे !
खोल दे ख़ामोशी की सारी तहें,
जहाँ से कभी नदियाँ गुजरीं
कभी कोमल तो कभी उखड जाने इतने दबाव के साथ!
जहाँ लोग शिकार की तलाश में घंटों टेक लिए रहे !

दिखाएँ वे निशान
जहाँ रगड़कर आग पैदा की गई
और कहें,
मेरी ख़ामोशी का मतलब ये ना लिया जाये कि,
आग देवताओं कि देन है
मुझे ही तराशकर उनको आकार दिया गया
जबकि उनके भीतर
मैं आज भी मौन हूँ !

मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
गुफाएं, खोल दें सारी गुफा चित्रों का इतिहास
जिसे इस श्रृष्टि के पहले कलाकार ने
अपने ह्रदय की चित्र भाषा में खिला था !
इतने तनाव में कोई पहली बार दिखा था !

उसके आने से पूर्व, कई दावानल आये
और नदियों का रंग लाल रहने लगा ,
तभी इसने छोड़ दिया अपना समूह
कभी वह बर्बर नरभछि लगता ,
कभी असीम सहृदयी ,
लेकिन अंततः ,इस द्वन्द में
भाले और तीर लिए लोगों के मध्य
उसने अंकित किया
एक निहत्था मानव जो चलता ही जा रहा था
कहीं किसी ओर !
मेरे प्रेम करने से पहले........