रेत हो गए लोग ...

रेत हो गए लोग ...
रवि प्रकाश

Sunday, October 17, 2010

सरयू नदी



मेरा समग्र अकेलापन
सरयू के तीरे
एक पत्थर में कैद है !
जिसकी आजादी की शर्त
सरयू अपने साथ समंदर में बहा ले गई
और मुझे अकेला छोड़ गई !

मैं आज भी वहीँ तीरे पर बैठा हूँ !
सरयू मेरा पांव तुम्हारे सीने मैं है,
फिर भी तुम बहे जा रही हो !
मुझे अपने सीने में लो सरयू
थोड़ी देर रुको ,सुनो सरयू
मैं वही,तुम्हारी रेत का बंजारा हूँ !

सरयू एक बार मेरे सीने में बहो
और तोड़ दो मेरी चुप्पी को !

1 comment:

  1. kavita achchi hai lekin chhoti........ just like shuru hote hi khatm ho gayi!!!!!!!! baharhal badhai.

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