जैसे कुहरा और उदासी,
एक साथ चले हों किसी समय में!
या फिर किसी ने शरारत की होगी,
पूरी सदी के चेहरे पर
कुहरा मल दिया होगा,
और हम पहचानने लगे होंगे उदासी को !
कहने लगे होंगे कि
आज मेरा मन बहुत उदास है!
या कि आज तुम बहुत उदास लग रही हो !
क्या मेरे बारे में भी ये सच है ?
क्योंकि जहाँ से ये भाषा आ रही है,
वहाँ बहुत घना कुहरा है,
जो मेरे अन्दर तक घर कर गया है!
क्योंकि इतनी बेचैनी के बाद भी,
ये भाषा बेचैनी कि नहीं, उदासी कि है!
जबकि मुझे लगता है
उदासी कि भाषा बेचैन होनी चाहिए ,
हरकत से भरी हुई !
जैसे कुहरा और उदासी,
ReplyDeleteएक साथ चले हों किसी समय में!
सुंदर रचना बधाई
जबकि मुझे(भी) लगता है
ReplyDeleteउदासी कि भाषा बेचैन होनी चाहिए ,
हरकत से भरी हुई !
शाबाश कोमरेड बढ़िया कविता है...
Ravi, poem is good but yaar please change Blog's background colour. it is quite unreadable. .
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