रेत हो गए लोग ...

रेत हो गए लोग ...
रवि प्रकाश

Thursday, July 29, 2010

अखबार



मरोड़े गए कबूतर की तरह
फड़फड़ करता हुआ
रोशनदान से गिरता है अखबार
और अपनी आखिरी साँसे गिनने लगता है
जनता, लोकतंत्र और रोटी के साथ!

हर घर
हर सुबह
आँख खुलने से पहले ही
सैकड़ों लाशें फड़फड़आती हैं रोशनदान से
लेकिन सभी घुस नहीं पाती हैं अन्दर!

निः संतान हो चुके लोग
लाशों के ढेर में
अपनी संतानों की तलाश में हैं ,
वहीँ उन पर निग़ाह गडाए
निः संतान दम्पतियों की निराशा दूर करने वाला
कैप्सूलों का व्यापारी है !
और रक्त के धब्बे साफ करने वाला
डिटरर्जेंटों का व्यापारी है!
क्या मेरे देश में व्यापारी
राजनेता का उत्तराधिकारी है ?

इस रोशनदान से
खून ही खून टपकने लगता है
सने हुए हाथों से मैं जनता का आदमी
रोटी के साथ
लोकतंत्र का सबसे साफ हिस्सा
अपने हाथ में लेना चाहता हूँ
आखिर वो कौन सा हिस्सा होगा ?

वही, जो लाशो के इस बण्डल में
नागी जांघो,वाईनो, बोतलों, खिखियाते चेहरों
और नए जिस्मों के आवेदन के साथ
मेरी माँ ,बहन और प्रेमिका के लिए
तेब्लोयेड के नाम से अलग से बाँध दिया गया है !

खबर दर खबर पढ़ते हुए
मैं माँ ,बहन और रोटी की सुरक्षा की गारंटी की तलाश में हूँ
क्योंकि आज जब ये जनता
नारों में रोटी लटकाए
लोकतंत्र के सामने खड़ी है
तो इसके पास
चुने हुए प्रतिनिधियों के रूप में व्यापारी ,
निःसंतानों के लिए कैप्सूलों की डिस्पेंसरी ,
रक्त में सने लोगो के लिए डिटर्जेंट ,
और रोटी के लिया विज्ञापन ,
के अतिरिक्क्त देने के लिए
और कुछ नहीं है !

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